my favourite najm ---by Guljar

नज़्म उलझी हुई है सीने में
मिसरे अटके हुए हैं होठों पर
उड़ते -फिरते हैं तितलियों की तरह
लफ्ज़ काग़ज़ पे बैठते ही नही
कब से बैठा हुआ हूँ मैं जानम
सादे काग़ज़ पे लिखके नाम तेरा
बस तेरा नाम ही मुकम्मल है

इससे बेहतर भी नज़्म क्या होगी-----------------

Comments

Udan Tashtari said…
बहुत आभार इसे पेश करने के लिए.
Your favourite ? Whose favourite is it not ?? Thanks a lot for this post.
कुश said…
आप यदि शीर्षक देती की सबकी फेव. नज़्म तो भी दुरुस्त होता.. लाजवाब नज़्म है.. शेयर करने के लिए बधाई
Neeraj Rohilla said…
बहुत सुन्दर नज़्म,
पेश करने के लिये धन्यवाद ।
यह नज्म तो सबके दिल की जुबान है ..:)शुक्रिया इसको यहाँ देने के लिए