saahil

साहिल पर खड़े हुए
सरकती रेत क़दमों के नीचे से
जैसे वक्त सरकता जाए मुट्ठी से
दूर क्षितिज पर एक सितारा
आसमान पर टंके ये लम्हे ,पलछिन
यही सच है
शेष है भ्रम --
गुजरता वक्त जिन्दगी का सच है
प्रतिपल बढ़ते कदम ,एक अनजान डगर पर
जिसके आगे पूर्णविराम
चिरनिद्रा चिर्विश्राम !!!

Comments

art said…
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.

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