यादें करीब बीस बरस पहले की हैं यानि ८८ के आस पास कि हब टाइगर हिल पर बादलों को अपने नीचे से गुजरता देखा था। और फिर मानों सूर्य ऍसी ही गोलाई लिये हुए नीचे से ऊपर निकल आया था। शु्क्रिया इन चित्रों के माध्यम से स्मरण दिलाने के लिए !
नज़्म उलझी हुई है सीने में मिसरे अटके हुए हैं होठों पर उड़ते -फिरते हैं तितलियों की तरह लफ्ज़ काग़ज़ पे बैठते ही नही कब से बैठा हुआ हूँ मैं जानम सादे काग़ज़ पे लिखके नाम तेरा बस तेरा नाम ही मुकम्मल है इससे बेहतर भी नज़्म क्या होगी-----------------
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