तुहिन कणों में हास्य मुखर सौरभ से सुरभित हर मंजर रंगो का फैला है जमघट मूक प्रकृति को मिले स्वर बाहर कितना सौन्दर्य बिखरा पर अंतर क्यों खाली है काश कि ये सोन्दर्य सिमट मुझमे भर दे उल्लास अमिट
उम्र के केनवास पर वक़्त बनाता गया कुछ धुंधले अक्स उभरते रहे आकार चित्रित होते रहे इन्द्रधनुषी रंग उम्र के कागज पर , वक़्त लिखता रहा अपनी इबारत ... एहसास कि स्याही से अनुभव कि कलम से उम्र के कागज पर - वक़्त करता रहा अपने हस्ताक्षर अंकित होते रहे कुछ नाम....