ख्वाब
रात भर डूबता उगता रहा इक ख्वाब
तुम्हारी आँखो से गिरा
मेरी पलकों पे सजा
रात भर दूधिया चाँदनी में
घुलता रहा एक ख़वाब....
पेड़ों के पीछे-चाँद के साथ साथ-
बादलों के संग चलता रहा एक ख़वाब.....
ओस से गीला
ठंड में दुबका
सपनो की चादर बुनता रहा एक ख़वाब.........
तुम्हारी आँखो से गिरा
मेरी पलकों पे सजा
रात भर दूधिया चाँदनी में
घुलता रहा एक ख़वाब....
पेड़ों के पीछे-चाँद के साथ साथ-
बादलों के संग चलता रहा एक ख़वाब.....
ओस से गीला
ठंड में दुबका
सपनो की चादर बुनता रहा एक ख़वाब.........
Comments
प्रभावशाली रचना
मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है- आत्मविश्वास के सहारे जीतें जिंदगी की जंग-समय हो तो पढें और कमेंट भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
ओस से गीला
ठंड में दुबका
सपनो की चादर बुनता रहा एक ख़वाब.........
this is the best ..
aapne bahut accha likha hai , badhai .
vijay
pls visit my blog : http://poemsofvijay.blogspot.com/
Bahut Sundar rachana
sath-sath, baadloN ke sng chalta rahaa ek khaab..."
bahot sundar aur anupam kriti hai..
jaise ek manzar.sa khinch jata hai aankhoN ke saamne... !
badhaaee . . . .!!
---MUFLIS---
बहुत अच्छी रचना है।
किसी ने खूब कहा है
पूछते हो कि कैसे बसर होती है तो सुनो
रात खैरात की सदके की सहर होती है।
merichopal.blogspot.com
तुम्हारी आँखो से गिरा
मेरी पलकों पे सजा ...
wah kya bat kahi apne.