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समय

समय मुट्ठी में बंधी रेत की तरह फिसल रहा है हाथ से समय बँधा क्यूं नही रहता कुछ ख़ूबसूरत लम्हो की तरह समय बहता रहता है दरिया की तरह समय पलट कर नही आता नही दिखता गुज़रे वक़्त की परछाई दर्पण में पड़ी लकीरो की तरह