swar

तुहिन कणों में हास्य मुखर
सौरभ से सुरभित हर मंजर
रंगो का फैला है जमघट
मूक प्रकृति को मिले स्वर
बाहर कितना सौन्दर्य बिखरा
पर अंतर क्यों खाली है
काश कि ये सोन्दर्य सिमट
मुझमे भर दे उल्लास अमिट

Comments

DUSHYANT said…
आप भी कमाल हैं हिन्दी और अंगरेजी दोनों में प्रवाह ,वाह वाह
Rachna Singh said…
thankyou for coming to my blog neelima
you are a writer in your self
अच्‍छी पंक्तियॉं
आतंरिक सौंदर्य की उत्कट चाह को परिलक्षित करती सुंदर रचना .
आतंरिक सौंदर्य की उत्कट चाह को परिलक्षित करती सुंदर रचना .

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