swar
तुहिन कणों में हास्य मुखर
सौरभ से सुरभित हर मंजर
रंगो का फैला है जमघट
मूक प्रकृति को मिले स्वर
बाहर कितना सौन्दर्य बिखरा
पर अंतर क्यों खाली है
काश कि ये सोन्दर्य सिमट
मुझमे भर दे उल्लास अमिट
सौरभ से सुरभित हर मंजर
रंगो का फैला है जमघट
मूक प्रकृति को मिले स्वर
बाहर कितना सौन्दर्य बिखरा
पर अंतर क्यों खाली है
काश कि ये सोन्दर्य सिमट
मुझमे भर दे उल्लास अमिट
Comments
you are a writer in your self